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देशभक्ति की कसौटी पर अब हर किसी को खरा उतरना होगा —- उपेन्द्र सिंह, राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के पूर्व स्टेट कोऑर्डिनेटर

जो इस राष्ट्र को अपनाते हैं, उन्हें बिना किसी भेदभाव के स्वीकार किया जाएगा लेकिन जो केवल अधिकार चाहते हैं, कर्तव्य नहीं निभाना चाहते उन्हें यह तय करना होगा कि वे किस ओर खड़े हैं ---- उपेन्द्र सिंह, राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के पूर्व स्टेट कोऑर्डिनेटर

रिपोर्ट-संजय सागर सिंह

अब समय आ गया है कि हर नागरिक आत्ममंथन करे और यह तय करे कि वह भारत को केवल एक भूखंड मानता है या एक राष्ट्र, एक संस्कृति और एक साझा भविष्य का प्रतीक —- उपेन्द्र सिंह, राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के पूर्व स्टेट कोऑर्डिनेटर

आगरा। राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के पूर्व स्टेट कोऑर्डिनेटर — उपेन्द्र सिंह ने कहा, “भारत का इतिहास केवल एक स्वतंत्र राष्ट्र का नहीं, बल्कि एक विचार का इतिहास है—सह-अस्तित्व का, विविधता में एकता का और न्याय, स्वतंत्रता, समता तथा बंधुत्व जैसे मूल्यों का, जिन्हें हमारे संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर जी और लौह पुरुष सरदार पटेल जी ने अपने जीवन से जीवंत किया लेकिन आज एक महत्वपूर्ण प्रश्न हमारे सामने खड़ा है—क्या हम उन मूल्यों पर खरे उतर पा रहे हैं, जिनके लिए हमारे पूर्वजों ने संघर्ष किया?

उन्होंने आगे कहा,”डॉ. अम्बेडकर जी और सरदार पटेल जी दोनों इस बात के पक्षधर थे कि भारत में रहने वाला प्रत्येक नागरिक न केवल अधिकारों का उपभोग करे, बल्कि अपने कर्तव्यों का भी ईमानदारी से पालन करे। आज जब कुछ लोग देश के भीतर ही विभाजन की भाषा बोलते हैं, तो यह ज़रूरी हो जाता है कि देशभक्ति सिर्फ शब्दों में नहीं, आचरण में दिखे।

श्री सिंह ने बताया कि भारत विभाजन का इतिहास इसी बात का गवाह है कि जब सह-अस्तित्व की भावना को नकारा गया, तब एक हिस्सा भारत से अलग होकर पाकिस्तान बन गया। परंतु, दुर्भाग्यवश, जिन लोगों ने उस बंटवारे के लिए वोट किया, वे पाकिस्तान नहीं गए और आज भी उनके भीतर विभाजनकारी सोच दिखाई देती है।

यदि देश में कहीं भी धार्मिक आधार पर हिंसा हो रही है, दंगे हो रहे हैं या बहुसंख्यक वर्ग को निशाना बनाया जा रहा है, तो यह केवल कानून व्यवस्था का मसला नहीं, बल्कि एक गहरी वैचारिक चुनौती है। पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जैसे क्षेत्रों में जो घटनाएं सामने आ रही हैं, वे इसी चिंता को पुष्ट करती हैं।

साथ ही उन्होंने कहा कि यह भी बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि गांधी और नेहरू की तुष्टिकरण की नीति ने बाद में राजनीतिक वोट बैंक का रूप ले लिया, जिसने डॉ. अम्बेडकर जी और सरदार पटेल जी जैसे राष्ट्रनायकों की चेतावनियों को नजरअंदाज किया। यदि सरदार पटेल जी जीवित होते, तो वक्फ जैसे विवादित कानूनों पर शायद ही आज की तरह मौन रहते और डॉ. बाबा साहब अम्बेडकर जी को जिस तरह अपमानित कर ऐसे विधेयकों को पास कराया गया, वह लोकतंत्र के उस मूल भाव के विपरीत था, जिसका उन्होंने सपना देखा था।

उन्होंने कहा, “आज आवश्यकता इस बात की है कि देशभक्ति की बात करने वाले केवल नारे न लगाएं, बल्कि उसका व्यवहारिक प्रमाण दें। एक ही नाव में दो दिशा में चलने की कोशिश अंततः नाव को डुबो देती है। जो लोग भारत में रहकर भारत को ही तोड़ना चाहते हैं, उन्हें यह समझ लेना चाहिए कि अब देश फिर से किसी विभाजन को बर्दाश्त नहीं करेगा। यह समय है निर्णय का। देश एक बार फिर एकजुटता की नींव पर खड़ा हो रहा है। अब कोई भी मीठी भाषा में छिपी कटुता या “भाईचारे” के नाम पर विभाजनकारी सोच को छुपा नहीं सकता।

आखिर में उन्होंने कहा, “जो इस राष्ट्र को अपनाते हैं, उन्हें बिना किसी भेदभाव के स्वीकार किया जाएगा लेकिन जो केवल अधिकार चाहते हैं, कर्तव्य नहीं निभाना चाहते—उन्हें यह तय करना ही होगा कि वे किस ओर खड़े हैं? अब समय आ गया है कि हर नागरिक आत्ममंथन करे और यह तय करे कि वह भारत को केवल एक भूखंड मानता है या एक राष्ट्र, एक संस्कृति और एक साझा भविष्य का प्रतीक।

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