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सिंचाई माफ, पानी हाफ – बूंद-बूंद को तरसते किसान, सूख रही मेंथा की फसल,

सरकार ने माफ की सिंचाई, लेकिन नहरों में नहीं बहा पानी; पिपरमेंट की फसल पर संकट, किसान बेहाल, जिम्मेदार मौन,

त्रिवेदीगंज (बाराबंकी) : मेंथा की खुशबू से खेतों की रौनक बढ़ाने वाला बाराबंकी का यह क्षेत्र आज पानी की एक-एक बूंद को तरस रहा है। बहरौली रजबहा जिसकी लंबाई लगभग 15 किलोमीटर है, लखनऊ जिले से निकलकर बाराबंकी में समाप्त होती है। इससे 11 माइनरें जुड़ी हैं, जो सैकड़ों बीघा खेतों की प्यास बुझाती थीं, लेकिन इस बार अप्रैल माह में महज दो-चार दिन ही पानी छोड़ा गया, वो भी ऊपरी क्षेत्रों तक सीमित रह गया।

किसानों की पुकार – मेंथा मांग रहा पानी

इस समय क्षेत्र में मेंथा (पिपरमेंट) की खेती जोरों पर है, जो तीन माह की फसल होती है और हफ्ते में एक बार सिंचाई आवश्यक है। किसानों का कहना है कि जब से मेंथा का भाव गिरकर ₹1000 से नीचे पहुंच गया है, तब से लागत निकालना भी मुश्किल हो गया है। ऊपर से पानी की किल्लत ने उन्हें दोहरी मार दी है।

ग्राम भदुवा (जिला लखनऊ) के किसानों – संतोष कुमार वर्मा, मनोज मिश्रा, रिंकू वर्मा, सतनाम वर्मा और अनुज वर्मा ने कहा कि “इस समय खेतों को पानी की सख्त जरूरत है। नहरें सूखी पड़ी हैं, मेंथा सूख रहा है।” ग्राम सभा छंदरौली के किसान नवीन शर्मा और सुनील वर्मा बोले, “किराए पर पानी लगवाने में ₹2000 तक खर्च आ रहा है। ढाई सौ रुपए प्रति घंटा में सिंचाई कराना पड़ रहा है।” यदि दो बीघा मेंथा पर

मोधु का पुरवा के हरिश्चंद्र रावत बताते हैं, “हमारी बोरिंग खराब है, नहर में पानी नहीं है, खेत खाली पड़े हैं। मेंथा की फसल शुरू हुई है, लेकिन पानी न मिलने से सब कुछ बर्बाद होने के कगार पर है।”

जिम्मेदारों की चुप्पी – किसानों में आक्रोश

जब सिंचाई विभाग के जेई शिव शंकर तिवारी से पूछा गया तो उन्होंने जवाब टालते हुए कहा, “सीनियर श्रीवास्तव जी से बात करें।” जब श्रीवास्तव जी से संवाद किया गया तो उन्होंने कहा, “अगले सप्ताह से पानी छोड़ा जाएगा, जो 15 मई तक चलेगा।” अब देखने की बात यह है कि तब तक किसान इंतजार कैसे करेंगे?

चुनाव में किसान ‘भगवान’, बाकी समय बेगान

हर चुनाव में किसानों को ‘अन्नदाता’ और ‘भगवान’ कहने वासिंचाई माफ, पानी हाफ – बूंद-बूंद को तरसते किसान, सूख रही मेंथा की फसल,

 

सरकार ने माफ की सिंचाई, लेकिन नहरों में नहीं बहा पानी; पिपरमेंट की फसल पर संकट, किसान बेहाल, जिम्मेदार मौन,

 

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