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कानून बना मज़ाक, पारदर्शिता का गला घोंट रही है कानून व्यवस्था!

त्रिवेदीगंज पशु चिकित्सा विभाग की बड़ी लापरवाही आई सामने , शुल्क तो ले लिया परन्तु जवाब देना उचित नहीं समझा

आरटीआई बना मज़ाक, जवाब के बदले मिल रही है चुप्पी!

कानून का मज़ाक, पारदर्शिता का गला घोंट रही है व्यवस्था!

 

त्रिवेदीगंज/बाराबंकी “सूचना का अधिकार” यानी R T I — जिसे जनता का हथियार कहा जाता है, अब सरकारी अफसरों के लिए खिलौना बनता जा रहा है। जवाबदेही की जगह टालमटोल, और पारदर्शिता की जगह चुप्पी मिलने लगी है। ताजा मामला सामने आया है ग्राम छंदरौली, पोस्ट गढ़ी, विकासखंड त्रिवेदीगंज के अरविंद कुमार वर्मा का, जिन्होंने 3 अक्टूबर 2024 को राजकीय पशु चिकित्सा अधिकारी, त्रिवेदीगंज से आरटीआई के तहत आठ बिंदुओं पर जानकारी मांगी थी। पर न जवाब मिला, न संतोष… मिला तो बस सिस्टम का तमाचा!
जब नियत समय पर कोई उत्तर नहीं आया तो अरविंद कुमार ने 8 नवम्बर 2024 को जन सूचना अधिकारी, पशु चिकित्सा विभाग, बाराबंकी को विधिवत अपील दाखिल की — अपील संख्या 1479/जन सूचना/2024-25।
इसके बाद उन्हें 9 नवम्बर को सूचना मिली कि 650 रुपये का शुल्क जमा करना होगा, लेकिन अफसरशाही की लापरवाही यहीं नहीं रुकी — उन्हें यह तक नहीं बताया गया कि राशि जमा किस खाते में करनी है!जनता को भ्रम में डालने की रणनीति या सोची-समझी ढिलाई है?
आपको बता दें कि अरविंद ने हार नहीं मानी — 13 नवम्बर को फिर विभाग को पत्र भेजा और 18 नवम्बर को उन्हें जवाब मिला कि पैसा विशिष्ट लेखा शीर्षक के अंतर्गत जमा करें और चालान भेजें।
बिना देरी किए, उन्होंने 20 जनवरी 2025 को भारतीय पोस्टल ऑर्डर के ज़रिए 650 रुपये का भुगतान राजकीय पशु चिकित्सा अधिकारी, बाराबंकी के नाम कर डाला और डाक द्वारा दस्तावेज़ भी भेज दिए।
अब लगभग ढाई महीने बीत चुके हैं — न आरटीआई का जवाब आया, न ही कोई संज्ञान! “आरटीआई नहीं, यह तो लूट की प्रक्रिया है!”
जनता यह सवाल पूछने को मजबूर है — क्या आरटीआई अब सिर्फ कागज़ों की खानापूरी बनकर रह गई है? क्या शुल्क जमा कराने के बावजूद जवाब न देना कानून का सीधा उल्लंघन नहीं?
अरविंद कुमार वर्मा कहते हैं,
जब आम आदमी अपने अधिकारों के लिए भीख मांगता नजर आए तो समझ लीजिए व्यवस्था खुद बीमार है
अब कौन देगा जवाब?
क्या बाराबंकी जिला प्रशासन इस मामले का संज्ञान लेगा?
क्या सूचना आयोग ऐसी लापरवाहियों पर कार्रवाई करेगा?
क्या आम आदमी को उसका संवैधानिक अधिकार मिलेगा या इस R T I को भी फाइलों में गुम कर दिया जाएगा?
यह मामला सिर्फ एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि उस सिस्टम की पोल खोलता है जो खुद को जवाबदेह कहता है लेकिन जवाब देने से कतराता है।

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